तुम मेरी बीवी ले जाओ / मैं तेरी बीवी ले जाऊँ

Saturday, July 4, 2015

आकाश और नजाकत अली दोनों ब्लू फ़िल्म देखते देखते एक दूसरे की बीवियों को देखने लगे आकाश नजाकत अली की बीवी नगीना की चूंचियां देखने लगा और नजाकत अली आकाश की बीवी अर्चना की चूंचियां देखने लगा दोनों बीवियाँ एक दूसरे के शौहर को बड़े प्यार से देखने लगी और मुस्कराने लगी दोनों की बड़ी बड़ी मस्त चूंचियां ब्रा के बाहर निकलने को व्याकुल थीं उधर स्क्रीन पर बीवियों की अदला बदली हो चुकी थी वे दोनों एक दूसरे की बीवियाँ को चोदने में जुटे थे इन चारों की नज़र जब फ़िर ब्लू फ़िल्म पर पड़ी तो वे अपने आपको रोक नही सके आकाश ने नगीना को अपनी तरफ़ खींच लिया और नजाकत ने अर्चना को . अब वे दोनों एक दूसरे की बीवी के कपड़े उतारने लगे आखिर में दोनों के बदन पर ब्रा व पैंटी बची इसी तरह दोनों बीवियाँ भी एक दूसरे के हसबैंड के कपड़े उतारने लगीं दोनों हसबैंड केवल चड्ढी में आ गए फ़िर आकाश ने नगीना की ब्रा खोल कर फेंक दी उसकी दोनों चूंचियां सहलाने लगा नगीना की चूंचियां बड़ी मस्त थी आकाश मजे लेकर चूंचियों से खेलने लगा उधर नजाकत अली ने अर्चना की ब्रा खोल दी अर्चना की चूंचियां उछल कर उसके हाथ में आ गयीं नजाकत उन पर टूट पड़ा दोनों हाथों से चूंचियों को दबाने का मजा लेने लगा इतने में नजाकत ने उसकी पैंटी भी उतार दी अर्चना की बिना झांट की चूत सबके सामने आ गयी नजाकत चूत को सहलाने लगा और फ़िर झुक कर चाटने लगा अर्चना बड़े मजे से चूत चटवाने लगी दूसरी तरफ़ आकाश ने नगीना को बिल्कुल नंगी कर दिया उसका हाथ नगीना की चूत पर चला गया नगीना भी अपनी झांट बना कर आयी थी चिकनी चूत आकाश को बहुत खूबसूरत लग रही थी वह चूत सहला कर उसे चाटने में जुट गया दोनों बीवियाँ बड़े मजे से एक दूसरे के मियां को चूत चटवा रही थी

थोडी देर में नगीना उठी और आकाश की नेकर नीचे घसीट कर उसे एकदम नंगा कर दिया और आकाश की तरफ़ मुस्करा कर देखा फ़िर लंड को मूठी में लेकर सहलाने लगी लौडा एकदम टन्ना गया

बोली :- वाह वाह क्या लौडा है यार कितना कड़क है आज मेरी चूत को पता चलेगा की चोदने वाला लौडा कैसा होता है

उसका सुपाडा खोलकर उसके चारों तरफ़ जबान फिराने लगी आकाश को अपार आनंद आने लगा. उधर अर्चना ने नजाकत की नेकर उतार कर फेंक दी उसका लौडा टन्ना कर अर्चना के हाथ में आ गया अर्चना ने जैसे ही उसे हिलाया और दो चार बार ऊपर नीचे किया लंड साला हिनहिनाने लगा

बोली :- बाप रे बाप इतना बड़ा कटा लंड बहन चोद ऐसा खड़ा हो गया की जैसे अभी अभी चूत की सवारी करेगा उसने लंड को एक थप्पड़ मार कर कहा भोसड़ी के पहले मैं तुम्हे चूसूंगी तब तू मेरी चूत में जाएगा

इस तरह नगीना और अर्चना दोनों एक दूसरे के हसबैंड का लंड चूसने लगी

अब नगीना ने आकाश का लौडा पकड़ कर अपनी चूत में घुसेदा और बोली भोसड़ी के आकाश अब तुम मेरी बुर खूब कस कस कर चोदो साली का भरता बनादो मेरी बुर मुझे बहुत परेशान करती है साली हमेशा लौडा माँगा करती है इसको पता चले की लौडा कैसा होता है उधर अर्चना अपनी दोनों टाँगें फैलाकर नजाकत अली से बोली मादर चोद नजाकत अली तुम अपना लौडा पूरा का पूरा मेरी बुर में पेल दो मेरी इस बेशरम चूत को चोद चोद कर पानी पिला दो भोसड़ी की हर रोज़ लंड लंड चिल्लाती रहती है आज इसको पता चले की लौडा कैसा होता है इस तरह अर्चना और नगीना दोनों एक दूसरे के हसबैंड से चुदवाने लगी तब तक आकाश बोला यार नजाकत अली तेरी बीवी तो चुदवाने में बड़ी मस्त है बड़ा मजा दे रही है मेरे लौडे को लगता है पराये मर्दों से चुदवाने में बड़ी माहिर है इससे पहले की नजाकत जबाब देता नगीना ख़ुद बोल पड़ी और नही तो क्या मैं अब तक कई मर्दों से चुदवा चुकी हूँ और मैं बताऊँ भोसड़ी के आकाश तुमभी नए नही हो तुम्हारा लौडा बतला रहा है की तुम भी परायी बीवियों को चोद चुके हो उधर अर्चना बोली यार नगीना तेरे शौहर का लौडा भी कई बीवियों को चोद चुका है क्योकि इसका लंड परायी बीवियों की चूत में जाकर दूना हो जाता है नजाकत अली बोला यार आकाश तुम्हारी बीवी की चूत बड़ी मस्त है मेरा लौडा खूब मस्ती कर रहा है वैसे तो मैंने कई बीवियाँ चोदी है लेकिन जो मजा तुम्हारी बीवी में है कहीं नही इतने में दोनों बीवियों ने पीछे चुदवाया और फ़िर चूंची चुदवाई आखिर में दोनों लंड लगभग एक साथ ही झड़ गए दोनों ने एक दूसरे के हसबैंड के झड़ते हुए लंड को खूब चाटा

दूसरी ट्रिप में नगीना आकाश के ऊपर नंगी लेटी हुई उसके लंड से खेलने लगी और अर्चना नजाकत अली के ऊपर नंगी लेटकर उसका लंड सहलाने लगी अचानक अर्चना ने पूंछा नगीना वह बताओ तुमको पराये मर्दों से चुदवाने का चस्का कब से लगा ?

नगीना आकाश के लंड को चूम कर बोली :- मैं उस समय १८ साल की थी मेरी चूंची बड़ी हो गयी थी चूत हर तरह से तैयार थी मैंने सबसे पहले अपने जीजा का लंड पकड़ा था फ़िर भाभी के भाई का पकड़ा और फ़िर एक दिन अपने एक बॉय फ्रेंड का मैंने पहली बार अपने बॉय फ्रेंड से चुदवाया था यह सब हो जाने के बाद एक दिन मैं अपनी खाला के घर गयी थी रात में बाथ रूम जा कर वापस आ रही थी तो नीचे की लाइट दिखी मैंने धीरे से नीचे झाँका अन्दर का सीन देख कर दंग रह गयी मेरी खाला एकदम नंगी होकर मेरे अब्बा का लौडा हिला रही थी मैंने पहली बार अब्बा का लौडा देखा साला क्या जबरदस्त लौडा है उनका, फ़िर थोड़ा और झुकी तो देखा की मेरी अम्मी मेरे खालू का लंड पकड़ कर सहला रही है, उनका भी लौडा बहन चोद कम नही था अब मुझे यह जानने में देर नही लगी की वे दोनों एक दूसरे के शौहर से चुदवाने जा रही है हुआ भी यही मेरा अब्बा मेरी खाला को चोदने लगा और खालू मेरी अम्मी को चोदने लगा इस अदला बदली के खेल को मैंने पूरा देखा दूसरे दिन भी ऐसाही हुआ उस रात को खाला मेरे अब्बा का लौडा हिलाती हुई बोली अरी दीदी अब नगीना को भी लौडा पकड़ना सिखा देना चाहिए अब वह जवान हो गयी है उसकी बड़ी बड़ी चूंची हो गयी है और झांटे भी अच्छी खासी निकल आयी है मैं तो मन ही मन खुश होने लगी मेरी अम्मी बोली तो पहले किसका लंड उसके हाथ में रखोगी ? खाला ने कहा जीजा का और किसका मैं तो चकित हो गयी सोचने लगी मैं अब्बा का लंड कैसे सबके सामने पकड़ लूंगी तब तक खाला फ़िर बोली देखो दीदी एक बात तो सच है की नगीना का बाप जीजा नही है वो दिल्ली वाला आदमी है जिससे तुमने ट्रेन में चुदवाया था इसलिए नगीना इनका लंड पकडेगी तो क्या हुआ वैसे भी हम लोगों में बाप का पता लगाना बड़ा मुस्किल है हमारा तो असली बाप साला एक विदेशी था अम्मी मान गयी तब मेरी खाला ऊपर आयीं और मुझे जगाकर नीचे ले गयीं बोली नगीना अब तुम जवान हो जवानी का मज़ा देने के लिए तुमको हमने बुलाया है ऐसा कह कर वो मेरे सामने नंगी हो गयी और मुझसे नंगी होने के लिए कहा मैं पहले तो शर्माने का नाटक किया फ़िर हो गयी वो बोली देखो नगीना तेरा अब्बा असली अब्बा नही है मैंने कहा क्या कह रही हो खाला उसने खुलासा किया देखो हम लोगों में सब चलता है मर्द जिसको चाहते है जब चाहते है चोद लेते है औरत जिससे चाहती है जब चाहती है चुदवा लेती है ऐसे ही तुम्हारी अम्मी ने कई मर्दों से चुदवाया था अब कौन असली बाप है किसी को क्या पता और फ़िर तुम्हारे असली बाप का क्या कहे मुझे अपने असली बाप का पता नही है ऐसा कह कर मेरा हाथ मेरे अब्बा के लंड पर रख दिया और कहा इसे खूब प्यार करो जैसे तेरी अम्मी मेरे शौहर के लंड का कर रही है मैं वैसे ही करने लगी लौडा एकदम से टन्ना गया इसके बाद फ़िर मुझे खालू का लंड पकड़ा दिया उस दिन मैंने दोनों लंड का स्वाद लिया और धीरे धीरे चुदवा भी लिया बस फ़िर रास्ता खुल गया इसके बाद तो मैंने घर के और बाहर के कई लंडों से चुदवाया शादी के पहले और बाद में भी इसलिए अब मुझे अदला बदली में ही मज़ा आता है अच्छा अर्चना अब तुम बताओ तुमने कब पकड़ा पहला लौडा ?

अर्चना बोली :- मैं भी मौसी के घर गयी थी मेरी मौसी ने शादी नही किया था मुझसे केवल ४ साल बड़ी थी गर्मी के दिन थे दोपहर का समय था मौसी ने मुझे अपने कमरे में बुलाया और बड़ी बेशर्मी से पूंछा अर्चना तुमने कभी लंड देखा है

मैंने कहा :- हाय, मौसी वह क्या कह रही है आप ?

मौसी :- इसमे क्या कहना अब तुम बड़ी हो गयी हो चूंची आ गयी है झांटें आ गयी है अब तो लंड की जरुरत है न ? मैंने कहा :- मौसी आप तो बड़ी बेशरम है
मौसी :- बेशर्मी से ही लंड चूत के खेल में मज़ा आता है क्या कोई लौडा पकड़ा है कभी तुमने ?

मैंने कहा :- नही

मौसी :- तब वह मेरे सामने एकदम नंगी हो गई और मुझे भी नंगी कर दिया मुझे अन्दर ले गई वहां पर एक आदमी केवल नेकर पहने खड़ा था मौसी ने कहा ये है बल्लू अंकल इनकी नेकर उतार कर इन्हे नंगा कर दो मैंने वैसा ही किया उनका लौडा उछल कर मेरे मुह के सामने आ गया

मैंने कहा :- अरे मौसी, लंड इतना बड़ा होता है क्या ? ऐसा कह कर मैंने लौडा पकड़ लिया और हिलाया फ़िर पीछे मुडी तो देखा एक और लौडा

मौसी :-अर्चना दूसरे हाथ से इनका लंड पकडो ये है गल्लू अंकल तुम्हारी सुरुआत दोदो लंड से होनी चाहिए ऐसा जिस लड़की के साथ होता है उसको ज़िन्दगी में लौडे आसानी से मिलते रहते है मैंने पहले ही सोच रखा था इस लिए तुमको यहाँ बुलवाया सच नगीना उस दिन मुझे जो लंड पकड़ने का मज़ा आया और फ़िर धीरे से चुदवाने का भी मज़ा आया उसे मैं कभी भी नही भूल सकती और तब से मुझे नए नए लंड पकड़ने का शौक हो गया

इतने में आकाश बोला यार नजाकत अली तेरी बीवी को चोदने में मुझे बड़ा मज़ा आने लगा है मैं इसको अपने घर ले जाकर खूब दिन रात चोदूंगा नजाकत अली बोला मुझे कोई ऐतराज़ नही है तू ले जा मैं तुम्हारी बीवी को ले जाता हूँ मुझे तो तुम्हारी बीवी की चूत और चूंची से इतना प्यार हो गया है की मेरा लौडा इनको छोड़ना को तैयार नही है थोडी देर में आकाश ने कहा यार एक प्लान है तुम मेरी बीवी को कलकत्ता ले जाओ उसने कलकत्ता नही देखा वहां की औरते बड़ी खूबसूरत होती है किसी कपल को पटा कर अदला बदली करके चुदाई करना फ़िर वापस आकर बताना और मैं तुम्हारी बीवी को लेकर जालंधर चला जाता हूँ वहां के लोग बड़े मस्त होते है अदला बदली के खेल में बड़ी रूचि लेते है मैं किसी कपल को पटा लूँगा और चोदा चोदी करके आऊंगा फ़िर तुमको सुनाऊंगा

नजाकत अली अर्चना को लेकर कलकत्ता जाने लगा राजधानी ट्रेन से वे दोनों ये सी फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे थे थोडी देर में एक कपल आया वे दोनों भी जवान थे उनको देखते ही नजाकत अली के मुह में पानी आ गया क्योंकि उसकी बीवी बड़ी सुंदर थी इधर अर्चना ने उस आदमी को देखा और सेक्सी अदा से मुस्करा कर बोली क्या आप भी कलकत्ता जा रहे है वे बोले हां फ़िर सेटल होने के बाद हम दोनों कपल बात करने लगे उसका नाम था चंदन मुखर्जी और उसकी बीवी मिसेज़ चंद्रानी मुखर्जी करीब २ घंटे बीत जाने के बाद चंदन ने शराब की बोतल निकाली और नजाकत अली को ऑफर किया नजाकत अली बोला की एक पैग मेरी बीवी के लिए भी चंदन यह सुनकर खुश हुआ वह अपनी बीवी से बोला लो तुम्हारी भी कंपनी बन गयी अर्चना ने आगे बढ़कर शराब का गिलास उठाया और सबको चीर्स कह कर पीने लगी अब आगे की बात अर्चना के मुह से सुनिए :-

मैं शराब पीने में मस्त हो गयी मेरी नज़र चंदन पर थी और उसकी नज़र मेरी चूंचियों पर थी इसलिए मैं अपनी चूंचियां धीरे धीरे खोलने लगी उधर मैंने देखा की चंद्रानी ने भी अपने बिलायूज का एक बटन खोल रखा था जिस पर नजाकत अली की नज़र गडी थी होते करते एक पैग ख़तम हो गया मुझे दूसरा पैग मिला जिसे पीकर मैं कुछ करने के लिए तैयार हो गयी मैंने दरवाजा बंद किया और साडी बिलौज को खोल कर ब्रा और पेटी कोट पर आ गयी मेरी चूंचियां मजे से बाहर झांक रही थी मुझे देख कर चंद्रानी ने भी ऐसा ही किया उसकी चूंची देखकर मैं समझ गयी की अब काम बन जाएगा क्योकि मेरी चूंचियां उसकी चूंचियों से बड़ी थी जिसे देखकर चंदन की लार टपक रही थी हां चंद्रानी मुझसे गोरी ज्यादा थी उसकी गोरी गोरी चूंची पर नजाकत अली फ़िदा हो गया इतने में नजाकत ने अपना हाथ मेरी चूंचियों पर रख दिया और दबाने लगा थोडी देर में मैंने ब्रा भी उतार फेंकी अब मेरी दोनों चूंचियां एकदम नंगी थी नजाकत तो चूंचियों को मसलने में जुटा था उधर चंद्रानी ने भी ब्रा उतार दी उसकी चूंचियां साफ साफ दिख रही थी वे दोनों अपनी अपनी बीवी की चूंचियों से खेल रहे थे लेकिन एक दूसरे के सामने इतने में चंदन ने शराब का गिलास खाली किया और बोला यार नजाकत अली मैं अपनी बीवी तुमको देने के लिए तैयार हूँ क्या तुम अपनी बीवी मुझे दोगे ?उसने कहा ,अच्छा बीवियों की अदला बदली हां क्यो नही और उसने चंद्रानी का हाथ पकड़ कर अपनी बर्थ पर घसीट लिया उधर चंदन मुझे अपनी बर्थ पर ले गया और अपने दोनों हाथों से मेरी दोनों चूंचियां नोचने लगा चूसने लगा चूमने लगा ऐसा लगता था जैसे उसके मन की मुराद पूरी हो गयी मैंने मौका देखा और झट से पेटी कोट भी खोल डाला और उसको बिना झांट की चिकनी नंगी चूत दिखा दिया वह तो पागल हो गया दीवाना हो गया उसने जबान निकाला और चूत चाटने लगा मैंने मुड कर देखा तो नजाकत अली चंद्रानी की चूत चाटने में लगा था उसके दोनों हाथ चूंचियों को मसल रहे थे तीन पैग शराब पीने के बाद शर्म कैसी मैंने फ़ौरन चंदन को नंगा किया उसका लंड हाथ में लिया और हिला हिला कर खड़ा कर दिया साला गोरा तगड़ा लंड बड़ा प्यारा लग रहा था उधर से चंद्रानी बोली अर्चना कैसा है मेरे हसबैंड का लौडा ? मैंने कहा यार क्या मस्त है भोसड़ी का लंड तबतक उसने भी नजाकत अली को नंगा कर दिया उसका लंड जैसे ही पकड़ा वह फनफना उठा चंद्रानी बोली यार ये तो कटा लौडा है लेकिन बड़ा खूबसूरत है ऐसा कह कर लंड मुह में लिया और चूसने लगी इधर मैं भी चंदन का लौडा चूसने में जुट गई कभी लौडा मुह में कभी चूंचियों के बीच बार बार यही करती रही आखिकार चंदन मेरी चूंचियों पर झड़ गया चंदन ने मुझे बड़े प्यार से लिपटा लिया उधर नजाकत अली ने भी कभी मुह में डाला कभी चूंची के बीच आखिर में चंद्रानी ने लंड मुह से निकला ही नही और वह मुह में ही झड़ गया चंद्रानी सारा सीमेन चाट गयी नजाकत अली ने उसे प्यार से चिपका लिया इसके बाद हम चारों ने डिनर किया

उसके बाद रात में हम चारों बिल्कुल नंगे हो गए मैं चंदन के साथ लेट गयी और चंद्रानी नजाकत अली के साथ मैंने चंदन का लौडा पकड़ा और अपनी चूत में घुसेदा उसने चोदने शुरू कर दिया उधर नजाकत अली ने अपना लौडा चंद्रानी की चूत में पेल दिया हम एक दूसरे को देख देख कर एक दूसरे के हसबैंड से चुदवा रही थी आधे घंटे में एक शाट मारा फ़िर सब लोग नंगे ही सो गए सवेरा होने पर फ़िर एक एक बार चुदाई हुई मैं तो सोच कर आई थी की ट्रेन में नजाकत से खूब चुदायुंगी लेकिन एक नया लौडा मिलने परमेरी लार टपक गयी अब मैं दिन में उससे खूब चुदवा लूंगी चंदन ने फ़िर कलकत्ता में हमको तीन कपल से मिलवाया और हमने तीनो से चुब चुदवाया नजाकत अली ने तीनो चूतों को चोद कर खूब मज़ा लिया

दूसरी तरफ़ आकाश और नगीना जालंधर में जाकर एक होटल में ठहर गए सवेरे जब नास्ता कर रहे थे तो एक जोड़ा सामने बैठा था दोनों एक दूसरे को देख रहे थे फ़िर कुछ बातचीत हुई उसने अपना परिचय दिया बोला मैं टीटू हूँ और यह मेरी बीवी मिसेज़ मंजीत कौर टीटू ने कहा हम लोग शाम को जरुर मिलेंगे आपका कौन सा कमरा है आकाश ने बताया नंबर ११२ तो फ़िर अच्छा है हम लोग १११ में है अगल बगल उसने कहा शाम को चारों इकठ्ठा हुए टीटू के कमरे में टीटू ने ड्रिंक्स का इंतजाम रखा था चारों शरब पीने लगे

आकाश बोला :- यार टीटू तुम बहुत अच्छे आदमी हो सबका ख्याल रखते हो टीटू ने देख लिया की मेरी नज़र उसकी बीवी की चूंचियों पर है वह बोला यार मेरी बीवी तुमको अच्छी लगती है मैंने कहा यार अच्छी तो है ही, इसकी चूंचियां तुमको अच्छी लगती है , हां बहुत अच्छी लगती है टीटू ने अपनी बीवी की ब्रा उतार दी उसकी बड़ी बड़ी चूंचियां देख कर मेरा लौडा खड़ा हो गया टीटू ने मेरा हाथ पकड़ कर उसकी चूंचियों पर रख दिया और अपनी बीवी का हाथ पकड़ कर मेरे लंड पर रख दिया बस पल भर में ही हम दोनों नंगे हो गए उसकी बीवी मेरा लंड पकड़ कर बोली हाय रे क्या घोडे के जैसा लौडा है उधर मेरी बीवी यानी नगीना से न रहा गया वह स्वयं नंगी हो गयी और टीटू को नंगा कर दिया उसका लंड सहलाया साला मजे से खड़ा हो गया नगीना बोली टीटू भोसड़ी के इतना मजे दार लंड लेकर अब तक बैठे क्यों थे फ़िर हमने एक दूसरे की बीवी को खूब चोदा

टीटू बोला :- देखो मेरी बीवी की चूंचियां बड़ी बड़ी होने के कारन मुझे कपल बड़ी आसानी से मिल जाते है मैं तो इस होटल के हर एक कपल के पास जाकर खुले खुले शब्दों में कहता हूँ की तुम मेरी बीवी चोद लो और तुंरत अपनी बीवी की चूंचियां खोल कर दिखा देता हूँ बस मर्दों की लार टपक जाती है और मुझे उसकी बीवी चोदने को मिल जाती है तुम्हारी बीवी की चूंचियां तो बड़ी बड़ी है और मस्त है तुमको तो तमाम जोड़े मिल जायेगे बस आगे बढो मेरी तरह इस प्रकार जालंधर में मैंने चार जोडों के साथ बीवियाँ बदल बदल कर चुदाई की वापस आकर आकाश और नजाकत अली ने अपनी अपनी कहानी सुना कर मज़ा लिया एक महीने के बाद इन्होने फ़िर बीवियाँ बदली और इस बार आकाश नगीना चेन्नई गए और नजाकत अली अर्चना अहमदाबाद वहां से आने के बाद आपको सुनायेगे अपने अपने अनुभव

दिवस - marathi pranay katha in marathi font

Saturday, February 21, 2015

माझी एक कॉलेज मधील कथा आहे. माझे नाव सोनिका आहे. मी २४ वर्षांची आहे. रंग गोरा, माझी फिगर ३२-२८-३४ आहे. छोटे आखूड केस, खांद्यापर्यंत आणि ५ फुट ४ इंच उंची. मी मुळात तमिळ नाडू मधील आहे. मी माझ्या वाढदिवसाची गोष्ट सांगत आहे. तो माझ्या आयुष्यातील सर्वात सुंदर बर्थडे सेक्स होता. तो पण माझ्या एका कॉलेज च्या मित्रासोबत त्याचे नाव राज. आणि आम्ही गेल्या ६ महिन्यांपासून सोबत आहे.

माझ्या कॉलेज च्या दिवसात मी त्याच्या सोबत संबंध होते आणि आम्ही दोघे बरेच वेळा आम्ही हार्ड सेक्स करत असू रात्रीपासून ते बर्थडे च्या दुसर्या दिवशी सकाळपर्यंत. मग ७ महिन्यांनी आमच्या मध्ये ब्रेक अप झाला आणि राज माझ्या सोबत नेहमी होता. आणि राजच्या चांगल्या स्वभावाने मी लगेचच त्या ब्रेकअप मधून बाहेर आले. आणि मग काहीदिवसा नंतर त्याच्या प्रेमात पडले.

आम्ही कमीतकमी आठवड्यातून एक वेळा तरी संभोग करत असू आणि एकमेकांशिवाय राहू शकता नसे. ह्या वर्षी माझा बर्थ डे रविवारी होता आणि मी खरच त्याची आतुरतेने वाट पाहत होते. मी राज ला नेहमीप्रमाणे शनिवारी संध्याकाळी भेटले आणि आम्ही शहरातील एका पब मध्ये गेलो. मी त्या दिवशी ३ वोडका पिल्या आणि मला थोडेसे हाय वाटत होते. आम्ही दोघे एकमेकांचा हात धरून नाचत होतो आणि मधून मधून त्याचा लंड मला लागेल असे बघत होते.

त्यांनी त्या दिवशी ११:३० च्या सुमारास पब बंद केला आणि राज ने मला माझ्या घरी सोडले, जाताना तो काहीच बोलला नाही. मला खूप वाईट वाटले कारण त्याने माझ्या बर्थडे विषयी काहीच बोलत न्हवता. आणि त्याने मला घरी तसेच सोडून दिले. मी घरी गेले आणि साधारण ११:५५ च्या सुमारास माझ्या रूम मध्ये जावून बेड वर पडून राहिले. मला खूप वाईट वाटत होते.

जसे घड्याळात १२ वाजले मला माझ्या बर्थडे चे फोन यावयास लागले आणि मला ते फोन उच्लावाव्याची सुधा इच्छा न्हवती. म्हणून मी फोन सायलेंट ठेवला आणि आंघोळ करावयास चालले गेले. मी परत आले आणि माझा फोन तपासला. त्या मध्ये ५० चुकलेले कॉल्स होते, पण राज कडून एकही संदेश न्हवता. मला खूप राग आला आणि माझा मोबाई ल मी जोरात फेकून दिला. मग पाउण वाजव्याच्या सुमारास दरवाज्यावरची बेल वाजली.

मग मी एका अनोळखी व्यक्तीला पहिले त्याच्या हातात केक, फुले आणि छोटी बास्केट होती. त्याने ती मला दिली आणि मला वाढदिवसाच्या शुभेच्छा दिल्या. त्या राज ने दिल्या होता आणि त्याने मला माझी बाल्कनी चे दार उघडे ठेवायास सांगितले होते, कारण त्याला बेडरूम मध्ये जावायचे होते.

मी लगेचच धावत रूम मध्ये गेले आणि पहिले तर राज माझ्या बाल्कनी च्या बाहेर उभा होता, मी दरवाजा उघडला आणि पहिले तर राज उभा होता. तो माझ्या जवळ आला आणि त्याने मला त्याच्या मिठीत घेतले आणि आणि आम्ही दोघे एकमेकांना बराच वेळ कीस करत राहिलो. तो कीस इतका रोमान्तिक होता कि जवळ जवळ २० मिनिटे तेच चालले होते. मग आम्ही कीस थांबविले आणि राज ने मला वाढदिवसाच्या शुभेचा दिल्या. मग आम्ही पुढे जावून केक कट केला. मी फाक्त बाथरोब घातला होता. आणि केस अजूनही ओलेच होते.

राज ने केक ठेवला आणि त्यावर मेनबात्या ठेवल्या. तो माझ्या मागे आला आणि मला मागून मिठी मारली. आणि सोबत सोबत माझ्या बुब्स सोबत खेळू लागला. त्याने माझ्या मानेला सुधा कीस करावयास सुरुवात केली. मग एकदा केक कापल्यावर, राज ने माझ्या बाथरोब ची गाठ सोडली आणि त्याला माझ्या अंगावरून काढून टाकला. मग त्याने तो केक पूर्णपणे माझ्या अंगावर लावले, माझ्या बुब्स वर बेंबी वर पुसी वर सगळीकडे लावले.

मग त्याने माझे कपडे काढले आणि माझ्या वर आला आणि माझ्या शरीरावरचा केक चाटू लागला. मग मी सुधा त्याच्या शरीरावर केक लावला आणि आणि आम्ही दोघे सुधा एकमेकांच्या शरीरावरचा केक चाटू लागलो. आणि हे चातावायचे सेशन जवळ जवळ आर्धा तास चालले. मी आता पूर्णपणे उत्तेजित जाहले होते. आणि मला असे वाटत होते कि त्याने मला लगेच चोद्ले पाहिजे.

माझी पुसी आता ओली झाली होती आणि मी त्याचा लंड माझ्या तोंडाने चाताव्यास सुरुवात केली, मग मी पाठीवर झोपले आणि माझे पाय पूर्णपणे उघडे झेल होते. मग मी राज ला मला चोदावयास बोलाविले. त्याने दोन उश्या माझ्या गांडीच्या खाली घातले आणि लगेचच त्याने स्वताची जागा घेतले आणि जास्त वेळ वाया न घालविता मला चोदावयास सुरुवात केली. मग राज ने माझ्या आत बाहेर करावयास सुरुवात केली, हे जवळ जवळ २० मिनिटे चालू होते. मग त्याने पूर्ण पाणी माझ्या आत सोडले

कमळी

Friday, February 20, 2015

भूतकाळात घडून गेलेल्या ह्या गोष्टीचा नेमका कालखंड कोणता ह्याचा अंदाज वाचकहो तुम्ही स्वतःच बांधायचा आहे. माझं बरंचसं लहानपण हे माझ्या आत्याच्या गावी गेलं. गेल्या तीन वर्षांत मात्र तिथे जायला जमलं नव्हतं. ते गाव तसं लहानच आहे पण आमचे आतोबा म्हणजे गावकीतील प्रतिष्ठित सदस्य आहेत. गावात आत्याच्या सास-यांनी बांधलेला चिरेबंदी वाडा आहे. त्यांची ब-यापैकी शेतजमीन आणि बागाईतसुद्धा आहे. हल्ली मात्र तिथे थोडी शांतताच असते. आत्याला तीन मुलगे आणि चार मुली आहेत. पण वाडयात त्यांच्यापैकी कोणीच रहात नाही. मुलांनी आपलं बस्तान शहरांत बसवलं आहे. सासरी गेलेल्या मुलीदेखील शहरातच स्थिरावल्या आहेत. सगळेजण स्वतःच्या व्यापात आकंठ बुडून गेले. रुबाबदार व्यक्तिमत्त्वाची आमची आत्या मात्र अगदी एकटी पडली आणि वेळेच्या आधीच म्हातारी होऊन गेली.
आतोबांचा काय इकडे तिकडे कसाही वेळ जातो. पण आमच्या काकांपैकी जे कोणी गावी जायचे त्यांना आत्याच्या एकाकीपणाबद्दल काळजी वाटायची. लोकांनी तिला बरंच समजावलं की आता शहरात मुलांकडे रहायला जा म्हणून. पण ती अशी थोडीच जाणार होती. मोठया मुष्कीलीनेच एकदा मधल्या मुलाकडे जाऊन तिने स्वतःच्या मोतीबिंदूचं ऑपरेशन करून घेतलं होतं. माझी हिवाळ्याची सुट्टी सुरू झाली तेव्हां आईनेच मला गावाला जायला सांगितलं. म्हणाली, "महिनाभर जाऊन आत्याबाईंची देखभाल करून ये." मला खरंतर जावंसं वाटत नव्हतं, पण कंटाळा आला तर दोन चार दिवसात परत येईन असं आईला सांगून मी आत्याच्या गावी गेलो. तिथे पोचल्यावर समजलं की आत्याच्या नणंदेची मुलगी अमितादीदी ही सुद्धा सुट्टीची रहायला आली आहे. मी तिला लहानपणी पाहिलं होतं. आता मात्र ती पूर्णपणे बदललेली समजूतदार मुलगी दिसत होती. तिच्या डोळ्यांवर चष्मा होता. रंग गोरा आणि उंची मध्यमशी होती. अंगाने व्यवस्थित भरलेली होती. मला पाहून तिलाही हुरूप आला होता बहुधा. पण ती माझ्याशी फार बोलायची नाही. घरात कामाला एक सोळा सतरा वर्षांची कमळी नावाची पोरगी होती. भिंगरीसारखी ती इकडे तिकडे बागडत असायची. मला बघून उगाचच हसायची. आत्याने सांगितलं की ही त्या जुन्या आत्मारामची पोरगी. तिचं लग्न तर झालं होतं पण अजून सासरी पाठवणी झाली नव्हती. माझ्या हेही लक्षात आलं की ती जितकी हसतमुख होती तितकीच बडबडया स्वभावाची पण होती. तिच्याबरोबर बोलतांना आरंभी मीच थोडा भिडस्त वाटत होतो पण संध्याकाळपर्यंत तिने रमेशदादा रमेशदादा म्हणत असं काही कीर्तन सुरू केलंन की एखाद्याला वाटावं ह्यांची फार पूर्वीपासून ओळख आहे. ती किंचित सावळ्या रंगाची असली तरी उंचीला अधिक होती. तिचं सारं अंगांग जणू तुमच्याशी बोलयला उत्सुक असायचं. उर्वलवरची तिची ओढणी सारखी ढळत रहायची. तिच्या घरी पुरुषमाणसं फार नसल्याने तिला पदर ओढायची सवय नव्हती. आपल्या ओढणीशी खेळणा-या तिला पाहून एकदातर मला वाटलं तिची ओढणी काढून सरळ फेकून द्यावी कुठेतरी. पण तेवढयात माझं लक्ष तिच्या भरलेल्या छातीकडे गेलं. हाय हाय. छातीवरची दोन टरबूजं पाहिल्यावर माझ्या अंगात तर असं सळसळून आलं. वरची बोंडं तर ड्रेसमधूनही स्पष्ट दिसत होती. मीच काय पण कोणाचीही शुद्धबुद्ध हरपली असती ते पाहून. मी आपला सरळसाधा स्वच्छ चारित्र्याचा पोरगा होतो तरीही मन थोडंसं ढवळलं गेलंच तिला पाहून. ह्या अगोदरची तीन वर्षं मी हॉस्टेलवर रहात होतो. तिथे मी दोन तीन वेळा पूर्णनग्न सिनेमे पाहिले होते. शहरातल्या सिनेमागृहांमधे तर अर्धनग्न सिनेमांची लाटच आली होती. गावात राहून ज्या गोष्टींची मला गंधवार्तादेखिल नव्हती त्या सर्व गोष्टी आता मला चांगल्याच उमजल्या होत्या. सुट्टी संपवून जेव्हां मी गावाकडून परत यायचो तेव्हां माझे मित्र उघड शब्दांत आपल्या जोवाळणीच्या कथा सांगायचे आणि मलाही माझ्या गोष्टी सांगायचा आग्रह करायचे. पण माझ्याकडे सांगण्यासारखं काहीच नसायचं. मग माझा मलाच फार राग यायचा. प्रत्येक वेळेस जातांना काहीतरी करण्याचा निश्चय करून जायचो पण हाताला काहीच लागायचं नाही. माझी संगोत्कटता शमवायचा एकमेव मार्ग माझ्याकडे होता आणि तो म्हणजे हस्तमैथुन. पण कमळीला पाहिल्यावर मात्र मी ठरवूनच टाकलं की सगळीच्या सगळी सुट्टी इथेच रहायला लागलं तरी चालेल पण हिला जोवाळूनच परत जाईन. ह्याच भावनेतून मी येता जाता दोन तीन वेळा तिच्या अंगाला लगटून पुढे गेलो. त्यावर अंग चोरून घेण्याऐवजी तिनेही एक धक्का मारूनच मला उत्तर दिलं. संध्याकाळी थंडीच्या कडाक्यामुळे आत्याने पडवीतली आंघोळीचं पाणी तापवायची चूल पेटवली. आजूबाजूच्या दोन तीन बायाही येऊन बसल्या. कमळी आणि अमितादीदी पण होत्या. एका बाजूला भिंत बांधून पडवी बंद केली होती. थंडीत आणि पावसाळ्यात आत्या तिथेच चुलीच्या उबेला झोपायची. आत्या त्या बायांना सांगू लागली, "आधी कमळीची आई रात्री सोबतीला यायची पण अमिता आल्यापासून कमळीच सोबतीला यायला लागली." आत्याचा बिछाना तिथेच बाजल्यावर घातलेला होता. थोडयाच वेळात वीज गेली. अमितादीदी उठून बिछान्यावर बसली. ती गप्पच होती. दिवसा माझ्याबरोबर काहीबाही लिखापढी करत होती. इकडे चुलीजवळ बायकांच्या गप्पा चालू होत्या. झोप आली म्हणून मी उठलो आणि माजघरात जायला निघालो. पण आत्याने मला थांबवलं. तिच्या गोष्टी अजून संपल्या नव्हत्या. तिनेच मला बाजल्यावर बसायला सांगितलं. अंगावर रजई ओढून घेऊन मी बाजल्याच्या दुस-या टोकाला बसलो. अमितादीदी भिंतीला पाठ टेकवून बसली होती. बायकांच्या प्रश्नांना होय-नाही करत उत्तरं देत होती.

मी पाय थोडा लांबवला तसं पाऊल तिच्या मांडीला लागलं. परत थोडी चाळवाचाळव केली तशी तिची मांडीही थोडी हलली आणि माझा अंगठा तिच्या भगुलीपर्यंत पोचला. अमितादीदी आपले दोन्ही पाय जरा पसरूनच बसली होती. तिने काहीच प्रतिक्रिया केली नाही. कसल्यातरी विलक्षण भावना माझ्या मनात उचंबळू लागल्या. त्या भरातच मी पाय आणखी थोडा दाबला. ह्या खेपेस मात्र तिने माझा अंगठा पकडून जरा बाजूला केला. पण तो बेटा नेमका तिच्या दुस-या मांडीशी सलगी करायला लागला. क्षणभराने मी मुद्दामच पाय परत पहिल्या जागी ठेवला. रजईच्या आतमधे अमितादीदीने परत माझा अंगठा पकडला. पण मी जेव्हां पाय काढून घ्यायला लागलो तेव्हां मात्र तिने त्याच जागी माझा अंगठा दाबून धरला आणि आपल्या भगुलीजवळ घासायला लागली. मी तिच्याकडे पाहिलं तर तिच्या चेह-यावरचं आनंदभरं स्मितहास्य मला आणखीनच मोहवून गेलं. माझा पंजा ती आता उत्साहाने कुरवाळत होती. माझं चित्त आता तिच्या भगुलीजवळच्या प्रदेशावर खिळलं होतं. बहुधा तिने सलवारच्या आत काहीच घातलं नव्हतं. कारण तिथल्या केसांचं अस्तित्व माझ्या पावलाला स्पष्ट जाणवत होतं. ते केस नक्कीच मोठे आणि दाट होते. हे जाणवून माझ्या अंतर्यामी एकच खळबळ माजली. एवढयात तिथेच बसलेली एक बाई मला म्हणाली, "झोप रे तू आता." "खरंच. बंडया बिचारा थकुन आलाय. ह्याच्या आतोबाची पंचायतीची बैठक अजून चालूच असेल. उद्या ह्याचा बिछाना आत घालेन. आज इथेच झोपूदे. बबडे, जरा बाजूला सरक बघू. बंडया नीट सरळ झोप बघू." आत्या अमितादीदीला बबडी म्हणत असे. का कोण जाणे पण मला पाहून कमळीला उगाचच हसू फुटत होतं. वीज गेलेलीच होती. गावात असतेच कितीशी म्हणा. कंदिलाच्या अंधुक प्रकाशात मी अमितादीदीचा चेहरा पाहू लागलो पण त्या चेह-यावरचे भाव काही मला कळले नाहीत. ती बिछान्यावरून उठायला लागली तशी आत्या म्हणाली, "तू कशाला उठतेस, बबडे ? हा तर जाईल आता." आणि बाहेरच्या खोलीकडे बोट दाखवून म्हणाली, "आजपासून मी कमळीलाही थांबायला सांगितलंय." अमिता भिंतीपासून थोडी लांब सरकली. मी अमिता आणि भिंतीच्यामधे एका कुशीवर झोपलो. माझी पाठ भिंतीकडे होती आणि माझे हात आता सहजपणे अमिताच्या छातीपासून मांडीपर्यंत पोचत होते. मला खात्री होती की ती विरोध केल्याचं फक्त नाटक करणार होती. मग मी तिच्या उर्वलच्या आत हात सरकवला आणि सरळ ब्लाऊजमधल्या दु्धाळ्यांच्या खालच्या भागाला कुरवाळू लागलो. हात वर नेऊन तिची सगळी छाती दाबावसं फार वाटत होतं. पण कोणी पाहिलं तर काय ही भीतीही मनात होती. तिच्या छातीची बोंडं आता ताठ होत होती. अंगावरची रजई तिने गळ्यापर्यंत वर ओढून घेतली. मग तर काय मला रान मोकळं मिळालं. हात लांबवून मी तिच्या स्वेटरची बटणं काढली. उर्वल वर सरकवून ब्लाऊजही मोकळा केला. आता रजईच्या आतमधे तिच्या छातीवर फक्त ब्रा राहिला होता. आलटून पालटून मी तिची दोन्ही दुधाळी दाबायला लागलो. त्यांचा ताठरपणा वाढतच होता. त्याचवेळेस तिथे बसलेल्या एका बाईने अमिताला तिच्या आईची आणि बहीणभावांची खुशाली विचारायला सुरूवात केली. उत्तर देतांना अमिता गोंधळायला लागली. तिचं अर्धं लक्ष माझ्या खेळाकडे होतं. मला मजा येत होती. आणखीनच जोरात मी तिची छाती दाबत राहिलो. एक एक दुधाळं आकाराने एखाद्या पपनसाएवढं होतं. दुसरा हात पाठीमागे नेला आणि तिच्या ब्राचा हूक काढला. पुढून ओढल्यावर ब्रा सैल झाला. दोन्ही दुधाळी आता मोकळी झाली आणि माझ्या हातात खेळू लागली. तेव्हां माझ्या बाजूचा आपला हात तिने माझ्या मांडीवर ठेवला. पाय लांबवून ती बसली होती. मी तिच्या मांडीला एका हाताने ओढून जवळ आणलं. मी केवळ लुंगीच घातली होती. माझं ताठलेलं मुसळ आता तिच्या मांडीशी सलगी करू लागलं. आपला हात ती माझ्या मांडीवर फिरवत होती. साधारण अर्धातास असाच गेला. मधेच मी तिच्या छातीजवळचा हात खाली नेऊन तिच्या मांडयांमधे सरकवला. सलवारच्या वरूनच मी तिच्या भगुलीपाशी हात लावून पाहिलं. तिथे सलवार ओली झाली होती. आता तिथे जमलेल्या बायांपैकी शेवटच्या दोघीही उठल्या आणि आत्याला म्हणाल्या, "आम्ही आता झोपायला जातो." अमितानेही झटकन आपले कपडे नीट सावरले. ब्रा तर उघडाच राहिला होता. ती उठल्यावर मलाही उठावंच लागलं. मुसळ अजूनही ताठलेलंच होतं. तसाच आपला सांभाळून उठलो. बाहेर माजघरात माझा बिछाना घातला होता. तिथे अजूनही तीनचार जणं बसून गप्पा मारत होते. बिछान्यावर रजई नव्हती म्हणून मी परत आत आलो. जास्तीच्या अंथरूणापांघरूणांचं कपाट माडीवरच्या खोलीत होतं. आत्याने कमळीला रजई काढून द्यायला सांगितलं. कंदील घेऊन मलाही तिने कमळीबरोबर जायला सांगितलं. पुढे मी आणि पाठोपाठ कमळी असे आम्ही दोघे माडीवर पोचलो. खोलीचं दार उघडून आम्ही आत गेलो. कपाटाचं दार उघडून खालच्या कप्प्यातली रजई काढायला म्हणून कमळी खाली वाकली. कंदील खाली ठेऊन मी तिला पाठीमागून मिठीत घेतलं. अमिताबरोबर इतकावेळ चाललेल्या खेळामुळे माझी भीड चेपली होती. ती थोडी गडबडली तेव्हां हातांचा मोहरा मी तिच्या छातीकडे वळवला आणि दोन्ही हातांनी तिचा एक एक स्तन पकडला. तिच्या कानाची पाळी ओठांमधे पकडून दातांनी हलकेच चावायला सुरुवात केली. माझ्या मिठीतून सुटायचा प्रयत्न ती करू लागली पण मिठी घट्ट असल्याने तिला जागचं जरासुद्धा हलता आलं नाही. घाबरून ती म्हणाली, "बंडूदादा आत्ता सोडा. कोणीतरी येईल इथे." तिचं बोलणं ऐकून मला आणखीनच चेव आला. तिच्या स्तनाग्रांना अंगठयाने कुरवाळत मी म्हटलं, "आत्ता इथे कोण यायला बसलंय ? मी काही तुझ्या भुगलीत शिरत नाहीये. फक्त दाबून बघतोय जरा." एव्हांना सारं काही लक्षात येऊन ती सावरली होती. म्हणाली, “बराच दिसतोस की रे तू." "काय हवं ते समज," असं म्हणून पटकन तिला माझ्याकडे वळवलं आणि तिच्या ओठांना माझे ओठ भिडवले. तिच्या उर्वलच्या आत हात सरकवून सरळ तिच्या दु्धाळ्यांकडे नेले. हळूहळू तीही रंगात यायला लागली. तिच्या छातीवरची बोंडं ताठ व्हायला लागली. दोघांच्या ओठांचं रसपान संपल्यावर मादक स्वरात ती पुटपुटली, "आत्ता सोड. मला भिती वाटत्येय. उशीरही होतोय." "एका अटीवर सोडेन." "कसली अट ?" "मला भुगलीत शि़रू दे." तिने अंगठा नाचवत नकार दिला. म्हणाली, "ही फुटाची गोळी घे." त्यावर झटकन हात खाली नेऊन तिचं पुढचं विवर दाबत मी म्हटलं, "फुटाची गोळी नाही. मला भुगली हवीये." "घेऊन काय करणार आहेस ?" मिठीतून सुटल्यावर तिने कपाटातली रजई काढत विचारलं. "जोवाळणार आहे." रजई खांद्यावर टाकून माझ्या मुसळाला लुंगीवरूनच कुरवाळत ती म्हणाली, "आत्ता नाही. उद्या." मग आम्ही खाली गेलो. मी माजघरात जाऊन झोपलो. आत्या तर घोरायला लागली होती. पण मला काही झोप येत नव्हती. मन खुशीच्या हिंदोळ्यावर डोलत होतं. एकाच वेळेस दोन दोन पक्षी, झकास. मग दोघींच्या बरोबर काय काय करायचं ह्याचा विचार करत कधी झोप लागली ते कळलंच नाही. सकाळी जाग आली तोवर नऊ वाजले होते. लुंगी ओलसर वाटली म्हणून हात लावून पाहिलं. मी स्वप्नातच पाझरलो होतो. तेवढयात अमिता आली. माझी भिजलेली लुंगी पाहून तिने हलकेच विचारलं, "हे रे काय झालं ?" मीही तिच्याच सुरात उत्तरलो, "रात्री स्वप्नात तुला जोवाळत होतो. मधेच रसभंग झाला." माझ्यावर डोळे वटारून ती आत गेली. थंडी असली तरी आता ऊन्हं वर आली होती. घरातली कामं उरकून कमळी वडलांबरोबर शेतावर गेली होती. आन्हिकं उरकून मी न्याहारी करत होतो तेव्हां अमिता जवळ येऊन बसली. दुस-या बाजूला चुलीवर आत्या पु-या तळत होती. ती तिथूनच म्हणाली, "अमिता, आंघोळ उरकून घे. बालेश्वर मंदिरात आज अभिषेक आहे. महिन्याचा दुसरा सोमवार आज." अमिताने काही उत्तर देण्याआधी मी हळूच म्हटलं, "प्लीज अमिता. तू नको जाऊस. काहीतरी कारण सांग." "का ?" तिने हसत विचारलं. "मला एक काम करायचंय." "कसलं ?" "तुझ्याबरोबर झोपायचं आहे." "ठीक आहे. आज हरकत नाही." जरा वेळाने अमिताला तिथेच बसलेली पाहून आत्या म्हणाली, "तुझी आंघोळ नाही झाली अजून ? देवळात येत्येस ना ?" त्यावर अमिता म्हणाली, "मामी, मला बरं वाटत नाहीये आज. मी नाही येत." "पण एकटी कशी रहाशील ?" "बंडया आहे की. तो थांबेल घरात. त्याला काय काम आहे ?" मी मुद्दामच तिला चिडवत म्हटलं, "आत्या, मी काही रिकामटेकडा नाही हां. मलाही गावात चक्कर मारून यायचं आहे." "मामी हा बघ कसा आहे तो," आत्याकडे बघत तिने तक्रारीच्या सुरात म्हटलं पण मला हळूच विचारलंन, "मग जाऊ मी पण ?" "नको नको. प्लीज." मी अमितालाच ऐकू जाईल अशा बेताने बोललो. तेवढयात आत्याने झापलंच मला, "गप रे तू बंडया. कुठे गाव उंडारायला निघाला आहेस ? बारा वाजेपर्यंत येतेच आहे मी. कमळीच्या शेतात ऊस तोडतायत आज. नाहीतर तिलाच थांबायला सांगितलं असतं. रात्रीपासून बघत्येय मी. हिची तब्येत काही ठीक नाहिये. उशीरापर्यंत झोपलीसुद्धा नव्हती बिचारी." शेवटची पुरी आत्याने कढईतून बाहेर काढली आणि विस्तव बाहेर ओढला. आत्या अभिषेकासाठी बाहेर पडल्यावर मी मुख्य दरवाजाचा कोयंडा लावून घेतला आणि अमिताचा हात पकडून तिला खोलीत घेऊन गेलो. वीज गेलेली नव्हती. बल्ब लावून तिला जवळ ओढलं. आपला चष्मा काढून तिने बाजूला ठेवला आणि मला मदत करायला लागली. ओठांना ओठ भिडवून माझ्या जिभेशी खेळू लागली. मीही इकडे तिकडे वेळ न दवडता तिच्या ढबोल्यांच्या मधल्या छेदात बोट घालून दाबायला लागलो. तिच्या मुखरसाने माझं तोंड भरून गेलं. माझं अंगही आता उत्साहाने भरून आलं होतं. ती चौपाटावर बसली. मी तिची उर्वल उतरवायला लागलो. ती म्हणाली, "नुसती वर कर." "पण मग मजा नाही येणार." असं म्हणत मी तिची उर्वल उतरवलीच. ब्रामधे बांधलेली पपनसाएवढी तिची दुधाळी आता माझ्यासमोर होती. थोडा वेळ वरूनच कुरवाळल्यावर मी ब्रा काढायला लागलो तर तिनेच पटकन पाठीवरचा हूक काढला. भुंईकन तिची दुधाळी बाहेर आली. जरा खालच्या बाजूला झुकलेल्या त्या दुधाळ्यांची बोंडं गुलाबी रंगाची होती. पाठी मागून तिच्या कमरेभोवती पाय पसरून बसलो आणि पुढच्या बाजूला हात नेऊन तिची दुधाळी दाबायला लागलो. बोंडं वर यायला लागली. दोन बोटांमधे पकडून त्या बोंडांबरोबर खेळतांना खूप मजा येत्त होती. माझं मुसळही आता पुरतं तरारलं होतं. तिच्या कमरेशी लगट करणा-या त्या मुसळाला हात लावत ती म्हणाली, "हे पाठून काय चालू आहे ? बास झालं आता." तिच्या बोलण्याकडे कानाडोळा करत मी लुंगी उतरवली. आत दुसरं काहीच नव्हतं. चौपाळावरून खाली उतरून मी तिच्या समोर उभा राहिलो. काळेभोर झाटे मुसळाच्या तळाशी पसरले होते. भरलेल्या गोटया खाली लटकत होत्या. एरवी कातडीच्या आतमधे लपलेला मुसळाचा लाल टोंगा बाहेर आला होता. तो टोंगा तिच्या नाकाजवळ नेऊन तिला म्हटलं, "अमिता, पकड." आधी ती थोडी संकोचली पण मग हातात पकडून कुरवाळायायला लागली. जरा वेळाने वाटलं की माझा फवारा उडणार. तेव्हां तिच्या पाठीवर हात फिरवत तिला उताणं झोपवलं. जेव्हां मी तिच्या परकराची नाडी सोडायला लागलो तेव्हां तिने विरोध करायचा हलका प्रयत्न केला. पण तिकडे लक्ष न देता मी नाडीची गाठ सोडवायला लागलो. ती म्हणाली, "आता थांब इथेच. मला भिती वाटतेय." तोपर्यंत मी गाठ सैल केली होती. ती परत म्हणाली, "पोट वाढेल रे. आज नको. उद्या निरोध घेऊन ये." "तुझ्या भगुलीत नाही रस सोडणार. मग तर झालं ?" मी म्हटलं. "बंडया, मला खरंच काळजी वाटतेय. मी पहिल्यांदाच जोवाळून घेत्येय." "माझी पण पहिलीच वेळ आहे," एवढं बोलून मी तिची नाडी सैल केली आणि दुस-या हाताने तिची छातीवरची बोंडं चाचपायला सुरुवात केली. तिचा विरोध हळूहळू मावळत होता. "सगळं ठीक होईल." असं म्हणून मी सरकन तिचा परकर खाली ओढला. आत तिने पॅंटी घातलीच नव्हती. एकदम तिची भगुली माझ्यासमोर उघडी झाली. लाजून तिने आपले डोळे मिटून घेतले. तिचं योनिमुख काळ्याभोर दाट केसांनी झाकलेलं होतं. नीट पाहिल्यावर भगुलीतलं तिचं तरारलेलं शीर्षस्थळ स्पष्ट दिसत होतं. मी बोट घालायला लागलो तसा तिने वरकरणी विरोध करायला सुरुवात केली. आता मला अगदी रहावलं नाही. माझ्या हातांनी तिच्या मांडया थोडया विलग करून मी मधोमध बसलो. अमितादिदीला माझ्या अंगाखाली घेऊन माझ्या हातांनी मुसळ पकडलं आणि तिच्या योनिमुखावर नीट ठेवलं. थोडा धक्का मारल्यावर सटकन ते मुसळ आतपर्यंत पोचलं. नेम बरोबर लागला होता. तिच्या तोंडून एक अस्फुट किंचाळी बाहेर पडली. ती हळूच पुटपुटली, "सील फाटलं रे." मी कंबर उंचावून तिला धपाधप जोवाळू लागलो. मला घट्ट मिठीत घेऊन ती माझे अगणित मुके घ्यायला लागली. तिचं गोरंपान अंगांग माझ्या सावळ्या देहाखाली चांगलंच रगडून निघत होतं. थोडयाच वेळात तिच्या भगुलीतून चक् चक् आवाज यायला लागला. मी फवारण्याच्या बेतात होतो तेव्हां पटकन मुसळ उपसून बाहेर काढलं आणि भुर्रकन फवारा सोडून दिला. सगळं वीर्य तिच्या अंगावर उडालं. जराशाने ती उठली आणि कपडे करायला लागली. मी म्हटलं, "अजून एकदा करूया." "नाही." "परत कधी ?" "कधीच नाही. हे पाप आहे." "पाप नाही. हा माझा दांडा आहे," मी अशा सुरात सांगितलं की तिला हसू फुटलं. कपडे घालून झाल्यावर तिने विचारलं, "बंडू, खरं सांग. ह्याच्या अगोदर हे कधीच केलं नव्हतंस ?" "कधीच नाही. एकदा फक्त छातीची बोंडं दाबली होती. तीसुद्धा इथेच." "कोणाची ?" तिला नवल वाटलं. "कमळीची." "कधी ?" "काल रात्री. जेव्हां आम्ही उशा शोधायला माडीवर गेलो होतो तेव्हां." "तू तर पार पोचलेला दिसतोस." एवढं बोलून ती बाहेर निघून गेली. दुपारी आत्या परत येईपर्यंत आम्ही भगुली नि मुसळाबद्दल गप्पा मारण्यात अगदी रंगून गेलो होतो. तिला सोळावं लागलं तेव्हां तिच्या चुलतभावाने अनेकदा तिला जोवाळून काढायचा प्रयत्न केला होता पण तिने संधीच मिळू दिली नव्हती. काल रात्री मात्र मी तिचा संयमाचा बांध फोडला. एकापरीने ते चांगलंच झालं कारण आजवर ती ह्या स्वर्गसु्खापासून उगाचच वंचित राहिली होती. जोवाळणी उरकल्यावर लगेचच आम्ही घराचं मुख्य दार उघडलं. शेजारची एक बाई आलीच तेवढयात. ती थोडावेळ अमितादीदीशी बोलत बसली. आंघोळीसाठी म्हणून मी बाहेरच्या नळावर गेलो. नंतर अमितादीदीची अंघोळ होईपर्यंत बाराला जेमतेम अर्धा तासच उरला होता. म्हणजे आत्या यायची वेळ झालीच होती. अमितादीदीला मी आणखी एका जोवाळणीबद्दल विचारलं तर ती तयार झाली नाही. पण माझ्या हट्टाखातर ती आपली भगुली दाखवायला तयार झाली. केलेल्या जोवाळणीमुळे तिची भगुली अजूनही थोडी तरारलेलीच होती. मी भोवतालचे केस काढून टाकायला सांगितले तर तिने हसण्यावारी नेलं. तिने माझं मुसळही उघडं करून पाहिलं. ते बिचारं आक्रसून सुकल्यासारखं व्हायला लागलं होतं. पण तिच्या कुरवाळण्यामुळे त्याला परत थोडी तकतकी आली. तेव्हां मात्र ती लांब सरकली आणि म्हणाली, "आता आज पुरे. हे परत रंगात आलं तर मलाही इच्छा होईल." दुपारी आत्याबरोबर कमळीसुद्धा आली. आम्हांला बघून ती गालातल्या गालात उगाचच हसत होती. गावात चक्कर मारून मी तीन वाजता परत आलो आणि बाहेरच्या खोलीत आडवा झालो. कमळी हळूच जवळ येऊन म्हणाली, "बंडूदादा, आज काय सगळं रान मोकळं होतं. अमितादीदीबरोबर झोपला असशीलच.” "तू तरी कुठे तुझ्याबरोबर झोपू दिलंयस म्हणून ती देणार आहे. आत्ताच्या आत्ता सांग कधी देणारेस आणि कुठे ?" एवढं बोलून मी इकडे तिकडे कानोसा घेतला आणि कमळीला बिछान्यावर आडवं केलं. तिच्यावर स्वार होऊन तिची भरदार दु्धाळं कपडयांवरूनच चाचपायला लागलो. कमळीसुद्धा मला कुरवाळायला लागली. कशी कोण जाणे पण तेवढयात तिथे अमितादीदी आली. कमळी माझ्याखाली असल्यामुळे तिने अमितादीदीला अगोदर पाहिलंन आणि माझ्या मिठीतून सुटायची धडपड करायला लागली. मी आणखी जोरात तिची दुधाळं दाबायला लागलो तर ती बावरल्या स्वरात म्हणाली, "अमितादीदी." मी मान वळवून पाहिलं नि मला एकदम हसू आलं. मनात म्हटलं, "चला हे बरंच झालं." पण वरकरणी मात्र मी घाबरल्याचं नाटक करत म्हटलं, "अमितादीदी कोणाला सांगू नकोस ह्यातलं." अमितादीदी एकदम गोंधळलीच हे ऐकून. मी डोळा मारून खूण केल्यावर तिच्या लक्षात आलं. तोपर्यंत आम्ही वेगळे झालो होतो. कमळी मान खाली घालून उभी राहिली आणि म्हणाली, "बंडूदादा ऐकतच नव्हता." "ठीक आहे. मी कोणाला सांगणार नाही पण एका अटीवर." कमळी पटकन म्हणाली, "कोणतीही अट चालेल." "मी म्हणेन तसं करायचं. माझ्या समोर तू बंडूकडून जोवाळून घ्यायचंस." अमितादीदी म्हणाली. ती असं काही म्हणेल ह्याची मला कल्पनाच नव्हती. कमळीने हलकेच मान हलवून होकार दिला. आम्ही सारे आत गेलो. कमळी तिच्या कामाला लागली. संधी मिळताच अमितादीदी माझ्या कानात कुजबुजली, "हिलाही आपल्यात सामील करून घेतलं तर आणखी मजा येईल आणि कसली धास्तीही उरणार नाही...
 

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